परवाह की लौ
जाती-धर्म के नाम पर उसने कर दिया तुम पर प्रहार,
तुमने मीलों दूर बैठे ले लिया सारे समाचार |
घावों को सहला के तुम क्यों सहेते हो,
शर्मिंदगी में छुप के तुम ये कहेते हो,
क्या परवाह सब चलता है चलने दो,
दो और मरे उनको मरने दो |
बूँद बरसे एक ही जब सब के माथे पर,
झगड़ो फिर क्यों तुम जल विवाद को लेकर |
खून अपने भाई का जला के क्या मिला,
तेरे जैसे रंग उसका लाल ही तो था |
असतो मा सतगामय, तमसो मा ज्योतिर्गमय |
बरसों से है संभाले जो धरती बोझ तेरा,
तेरे कन्धों पर कहीं उसका बोझ न रह जाए |
दिल में एक नयी लौ को जला,
आज़ाद भारत को आज़ादी का मतलब सिखा |