तीन बंदर
उसकी डोली उठी लगता है जनाज़ा
मौत ही जैसे कहती तू आजा
सर झुक झुक के कट ही जाता
हाँ काश की ये सब तू रोक पाता
खिड़की से देखी है चिता जलती
वो दहेज की लपटों मे क्यूँ झुलसी
तुमने कुछ ना किया मुँह मोड़ लिया
चंद सिक्कों मे उसे तोल दिया हाँ
जल्लाद हैं हम और कुछ भी नहीं
ये कत्ल किए और दुख भी नहीं
देखा है सब इन्हीं आँखों से
बातें बस कही निगाहों में
जिसने कुछ ना कहा वो भी पापी है
गुनाहों से दबी ये छाती है
लाशों पर खड़े किए ये मकान
पर ना देखा ना सुना ना कहा क्यूंकी
तीन बंदर
हम वो तीन बंदर
बापू के थे जो वो तीन बंदर
हाँ तीन बंदर
हम वो तीन बंदर
बापू के थे जो वो तीन बंदर
इंसानियत की इस कब्र पर गाड़े खूँटे घोंपे खंजर
हाँ तीन बंदर
हम वो तीन बंदर
बापू के थे जो वो तीन बंदर
चौराहों पर गुमराह होकर
वो यूँ कब्रिस्तान खड़े करते
आँखों से आँसू जो सूखते
हम चंद दिनों में सब भूलते
ज़मीर को मैने ही कफ़न दिया
तैखाने में उसे दफ़न किया
हैवानियत की बलि वो चढ़ा
जिसकी लाश के गले मैं आज लगा
कल ही हुई थी उससे मुलाकात
और कब्र में सोया वो आज की रात
नज़रें क्यूँ ना मिलती अकेले में
खोखला ये समाज खूनी मेले में
वो ज़हर उगलते बाँट ते
और हम बस अख़बारों को चाटते
लाशों पर खड़े किए ये मकान
पर ना देखा ना सुना ना कहा क्यूंकी
तीन बंदर
हम वो तीन बंदर
बापू के थे जो वो तीन बंदर
हाँ तीन बंदर
हम वो तीन बंदर
बापू के थे जो वो तीन बंदर
इंसानियत की इस कब्र पर गाड़े खूँटे घोंपे खंजर
हाँ तीन बंदर
हम वो तीन बंदर
बापू के थे जो वो तीन बंदर
मासूम खुशी से ये फ़ासले
लाशों के ढेर से काफिले
तेज़ाब की बारिश के तले
जले सपने मेरे गावों के
जो बंजर हुई वो मेरी ज़मीन थी
तमाचे मारती मुझे तकदीर थी
बना मैं मज़ाक कर्ज़ो के तले
क्यूँ सूली चढ़े वो मेरे सगे
कोई मुझसा जलता हर चौक पे
तमाशा देखते तुम शौक से
माँगता हूँ हिसाब हर रोटी का
मेरे खून से बना हर ये निवाला
धुआँ तो बॅस मेरी चिता से उठा
चूल्हा धुआँ जो उठाना भूल गया
लाशों पर खड़े किए ये मकान
पर ना देखा ना सुना ना कहा क्यूंकी
तीन बंदर
हम वो तीन बंदर
बापू के थे जो वो तीन बंदर
हाँ तीन बंदर
हम वो तीन बंदर
बापू के थे जो वो तीन बंदर
इंसानियत की इस कब्र पर गाड़े खूँटे घोंपे खंजर
हाँ तीन बंदर
हम वो तीन बंदर
बापू के थे जो वो तीन बंदर
आईने में देखो सच नज़र आएगा…