अजब देस मेरा
जहाँ मिटटी में खेले बच्चे
गोबर से थेपे हो घर कच्चे
संग गोपाल यशोदा दिन बिताए
ऋतुएं भी अजब खेल रचाए
पडोसी से शकर मांग ली
‘भाई इतना तो बनता है ‘
डाकिया पढ़ देता है चिट्ठियाँ
बनिये के साथ उधार चलता है
The essence of a homeland
Follows us
Regardless of the miles,
Or insincere documents,
The years or the language changes,
Or the personation of a foreigner,
A soul is just that of which it is made.
ख़यालात में पिछड़े हो शायद
प्रगति से कभी बिछड़े नहीं
परमाणु की ताक़त भले ही सही
बेवजह किसी को छेढ़े नहीं
छत्त पे भला ओर कौन पतंगों के पेच लड़ाए
बेवजह होली पे चेहरे रंगाये
(डाल डाल पात पात में धूम मची है धूम धूम )
The monsoons and the dirt,
A grandmother’s love,
And the colors of xanadu,
Embodied by the hallowed melodies,
Still observed by strangers,
Addictive is the flavor of my homeland.
छत्त पे भला ओर कौन पतंगों के पेच लड़ाए
बेवजह होली पे चेहरे रंगाये
इद दिवाली का भी रंग अलग है
औरों के घर खीर सेवइयां खाएं
हाँ हो भले मेरा देश गरीब
हाँ हम थोड़े जाहिल ही सही
अभिमान ढीठ का रंग भले हो
फितरत में अपनी शामिल ही सही
मगर,
बंद मुट्ठी से आसमान है भीचे
दरिया में रहके समंदर है खीचे
हमारी उड़ान देख परों पे न जा
गौर से देख कौन है किस के नीचे
हाँ वो ही देश,
जहाँ मिटटी में खेले बच्चे
गोबर से थेपे हो घर कच्चे
संग गोपाल यशोदा दिन बिताए
ऋतुएं भी अजब खेल रचाए
अजब लोग अजब है देस मेरा
जो बूझे सो अपनाए
जो बूझे सो अपनाए