उमीद
इस जमी से दूर जाके
पाले तू आसमा को
मुश्किलें सब पार करके जितले मंज़िलों को
त्याग कर तू वो समा , अपना करले ये जहाँ
हार ना उमीद तू , हार ना उमीद तू
ख्वाबों को अपने जुटाकर राह अपनी तू बनालें
जान ले उमीद वो है हारकर भी जो कहे
एक दिन तू जीतेगा
पाख खुदी बन जाएगा
तोड़कर हर जाल को , तोड़कर हर जाल को
जेहन से हर ख़ौफ्फ का साया अब तू दे हटा
अक्स को पहचान अपने हर भरम को भूल जा
हर सितम को दे जला, कर्म को अपने निभा
फिर जगा उमीद तू, फिर जगा उमीद तू