Desh Raag
अर्जुन – देश राग
जब शाम आए तो…
तू चल ना पाए जो…
कदम तेरे दाग मगये…
मंज़िल को पाने को…
वो जिसने जाग बनाया !
सबको जीना सीखया !
क्यूँ है मिटाने को !
सब कुछ जलाने को !
फिर क्यूँ ऐसा लगे के
ना कुछ भी है तेरा ?
तेरी ज़मीन यह आसमान !
तेरा ही है सारा जहाँ !
फिर क्यूँ लडे, हर पल मारे !
तेरा ही है सारा समा !
तेरी ज़मीन यह आसमान !
तेरा ही है सारा जहाँ !
फिर क्यूँ लडे, हर पल मारे !
तेरा ही है सारा समा !
आ जीले ज़रा…
आ जीले ज़रा…
कुद्रत की राहों पर…
हम सब का है यह घर…
इंसानी साजिश पर…
क्यूँ इसको बाँटे हम…
वो जिसने जाग बनाया !
सबको जीना सीखया !
क्यूँ है मिटाने को !
सब कुछ जलाने को !
फिर क्यूँ ऐसा लगे की
ना कुछ भी है तेरा ?
तेरी ज़मीन यह आसमान !
तेरा ही है सारा जहाँ !
फिर क्यूँ लडे, हर पल मारे !
तेरा ही है सारा समा !
तेरी ज़मीन यह आसमान !
तेरा ही है सारा जहाँ !
फिर क्यूँ लडे, हर पल मारे !
तेरा ही है सारा समा !
आ जीले ज़रा…
आ जीले ज़रा…