Khidmat-e-Watan(Sonnet)
इंतेहाँ ज़िंदगी का सामने खड़ा
है ये चाह मान में के मैं बन सकूँ बड़ा
थी ये आरज़ू मा के काम आ सकूं
वहशत-ए-सनम से मई तो उम्र भर लड़ा
ज़ुलफ हो सनम की या हो अश्क़ मुल्क़ का
सोचना पड़ेगा इनमे कौन है बड़ा
नज़र करते है तेरे लिए ये ज़िंदगी
खिदमत-ए-वतन ही अब है मेरी बंदगी
सजदा-ए-वतन से ही तो खुश हुआ खुदा
है दुआ के इश्क़ मेरा बेज़ुबान हो
सरफरोशी हम पे अब तू मेहरबान हो
तो जन्नतों का अक्स ले के आएगी सुबह
है मेरे हुमदूम इसी मे कैफ़-ए-ज़िंदगी
खिदमत-ए-वतन ही तो अब हद है इश्क़ क़ी.
Arun M
boring & very slow song
Navesh
Dear Arun,
No offense, but did you even try and understand what this “boring” and “very slow” song is trying to convey…try looking deeper and I’m sure you will realise its true worth